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ज़िन्दगी दो पल की-Live life to the fullest

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मरने में वक़्त नहीं लगता और जीने के लिए दो पल ही काफी होते हैं – ऐसा कई लोगों ने बार-बार कहा है और समझाया भी है | बात बहुत सीधी सी है, ज़िन्दगी को जी लो मरना तो सभी को है… एक न एक दिन सब कुछ राख हो जाता है | 

मरने के बाद लोग कहते हैं “अच्छा इंसान था” या फिर “अच्छा हुआ मर गया” | दोनों में से सुनने में कौनसा बेहतर लगता है ? “अच्छा इंसान था”…यही ना, फिर क्यों न हम वाकई में अच्छे इंसान बन कर जीयें ?

अच्छा होना मतलब इतना ही नहीं होता कि आप सभी का भला करते हो और खुद घुटते रहो | अच्छा काम करो मगर खुद की ज़िन्दगी भी जीयो | खुद खुश नहीं रहोगे तो किसी और की ख़ुशी के लिए कैसे कदम उठाओगे – इसे प्रैक्टिकल होना कहते हैं और सही मायने में देखा जाए तो प्रैक्टिकल इंसान ही खुश रहते हैं | दूसरों के लिए उतना ही करो कि वो एक दिन आकर कहे कि तुमने सही राह दिखाई | ज़रूरत पड़ने पर परोपकार करने में कोई कसर ना छोड़ो मगर किसी को भी इतना मत दो कि वो हर बात के लिए दूसरों की ओर देखे और आलसी हो जाए |

सकारात्मक सोच(पोज़िटिव थिंकिंग) में सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है प्रैक्टिकल सोच क्योंकि आप प्रैक्टिकल होकर ही आगे बढ़ सकते हैं…खुद भी संतोष पाते हैं और दूसरों को भी यह समझ आता है कि आप इसकी टोपी उसके सर करने वाले लोगों में नहीं हैं | इससे लोगों का आप पर विश्वास बनता है | जो इंसान यह जान ले कि उसके अपने सपने पूरे करने में कई बाधाएं आ सकती हैं तो पहले उसे उन बाधाओं से निपटने का प्लान बनाना चाहिए | दूसरों को सीढ़ी के सबसे ऊपरी हिस्से पर पहुंचा कर मगर स्वयं को पीछे धकेल कर आप न सिर्फ अपने सपने में खुद रोड़ा बनते हैं बल्कि दूसरों को मौका देते हैं कि वो आपका फ़ायदा उठाएं |

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ज़िन्दगी के लिए सबका अपना अपना नजरिया होता है | किसी को सिर्फ दूसरों को सुखी देखकर सुख मिलता है मगर क्या कभी किसी ने भी उन लोगों के दिल के उस कोने में झाँककर देखा है जहाँ दर्द छुपा हुआ है ? कोई नहीं देखता…कोई नहीं समझता | खैर…आप अपनी ज़िन्दगी में वो सब सत्कर्म करिए जो आपको लोगों की नज़र में ऊंचा उठा दें मगर अपनी ज़िन्दगी की छोटी-बड़ी खुशियों को नकारिये मत | सोचिये तो सही कि कल को लोग अगर ये कहते पाए जाएँ कि इसने सबके लिए सब कुछ किया मगर खुद नहीं जीया तो आपको कैसा लगेगा !! आप उस समय सोच में पड़ जायेंगे कि हाँ वाकई मैंने अपनी ज़िन्दगी में तो कुछ पाया ही नहीं | और यह बात बहुत ही स्वाभाविक है कि कुछ समय बाद लोग आपके उपकारों को भूल जाएँ… अब कैसा लगा ? यह बात चुभती है कि जिनके लिए इतना कुछ किया वो तो हमें भूल ही गए | ऐसी स्थिति पैदा हो जाये उससे पहले अपने तरीके से अपनी ज़िन्दगी को जी लीजिये जिससे कि कोई क्या कहता है इससे फर्क ही न पड़े क्योंकि जब हम खुद ख़ुशी से जीते हैं तो किसी की कही बातों का हमपर असर नहीं होता…होता भी है तो नगण्य होता है | सही तौर पर सुखी इंसान के ऊपर किसी भी बेकार की बात, ताने, बुराई या ऐसी किसी भी नकारात्मकता का असर नहीं होता क्योंकि वो ज़हनी तौर पर सुखी होता है |

कहा गया है न कि आपकी ख़ुशी आपके अपने हाथ में होती है | अपनी ख़ुशी के लिए हर संभव कदम उठाइए | विचारों से साधु बनकर जीने की बातें किताबों में अच्छी लगती हैं, ये आज के युग में उतनी संभव नहीं हैं जितनी पुरातन युग में थी | आज बदलते ज़माने के साथ इंसान को खुद बदलना पड़ता है | आपके विचार पहले आपके जीवन को प्रभावित् करते हैं | डर के जीए तो क्या जीए ? किसी भी बात को लेकर मन में डर को पहला स्थान मत दीजिये | यह बात बिलकुल सही है कि हमारे डर हकीक़त में बदल जाते हैं, इसलिए कोई भी कदम उठाते समय उसके सकारात्मक पहलू को सोचें, उसके बाद उसके अन्य छोटे-बड़े बुरे प्रभावों के बारे में | सही समय पर उठाया गया सही कदम आगे के लिए उचित रास्ते दिखाता है मगर डर के उठाया गया कदम अन्य उचित कार्य करने से रोकता है |

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प्रयास हमेशा यही हो कि हमारे कदम हमारे फायदे के लिए हों, मगर कभी भी किसी को धोखा देकर खुश होने की बात जहाँ आती है, वहां सब गड़बड़ हो जाता है | ज़िन्दगी का मतलब आज तक कभी किसी की समझ में नहीं आया, समझने की कोशिश में ज़िन्दगी ख़त्म हो गयी और कुछ हासिल नहीं हुआ | जो भी करें, संतुलन बना के करें | अपनी ज़िंदगी को भरपूर जीयें |

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